शतरंज पर आधारित प्रसिद्ध फ़िल्में - Famous Movie Based on Chess: एक रोचक सफ़र - An Interesting Journey


शतरंज, बुद्धिमत्ता और रणनीति का खेल, सदियों से लोगों को मंत्रमुग्ध करता आ रहा है। यह सिर्फ़ एक खेल नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू का प्रतीक बन चुका है — जहाँ हर चाल का असर आगे की पूरी रणनीति पर पड़ता है। यही कारण है कि सिनेमा की दुनिया ने भी इस खेल को बड़े पर्दे पर उतारने में रुचि दिखाई है। इस लेख में हम कुछ प्रसिद्ध भारतीय और विदेशी फ़िल्मों की चर्चा करेंगे, जो शतरंज को केंद्र में रखकर बनी हैं और दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं। 


  1. शतरंज के खिलाड़ी (1977) – निर्देशक: सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा में शतरंज पर आधारित सबसे प्रसिद्ध फिल्म मानी जाती है “शतरंज के खिलाड़ी”, जिसे महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने बनाया था। यह कहानी मुंशी प्रेमचंद की उसी नाम की कहानी पर आधारित है। फ़िल्म 1856 के लखनऊ की पृष्ठभूमि में दो नवाबों – मीर और मिर्जा – की कहानी है, जो अपने देश और समाज के पतन के बीच भी शतरंज के खेल में इतने लीन हैं कि उन्हें बाहरी घटनाओं की परवाह नहीं। 

  मुख्य संदेश: यह फ़िल्म शतरंज के ज़रिए उस समय की राजनीतिक निष्क्रियता और अंग्रेजों की चालाकी को दिखाती है। शतरंज यहाँ प्रतीक बनता है देश की राजनीति का। 



  2. द क्वीन'ज़ गैम्बिट (The Queen’s Gambit, 2020) – नेटफ्लिक्स वेब सीरीज़ हालाँकि यह वेब सीरीज़ है, पर इसकी लोकप्रियता और प्रभाव किसी फ़िल्म से कम नहीं। “The Queen’s Gambit” एक युवा अनाथ लड़की, बेथ हारमोन की कहानी है, जो शतरंज की दुनिया में एक चैंपियन बनने के लिए संघर्ष करती है। यह श्रृंखला शतरंज की बारीकियों, मानसिक तनाव और व्यक्तिगत जीवन के उतार-चढ़ाव को खूबसूरती से दिखाती है।

  प्रभाव: इस सीरीज़ के बाद विश्वभर में शतरंज की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। गूगल पर "How to play chess" जैसे सर्च टॉप पर आने लगे। 


  3. पॉन सैक्रिफाइस (Pawn Sacrifice, 2014) – बॉबी फिशर की बायोपिक यह फिल्म अमेरिकी शतरंज ग्रैंडमास्टर बॉबी फिशर के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने 1972 में सोवियत संघ के ग्रैंडमास्टर बोरिस स्पास्की को हराकर विश्व चैंपियन का खिताब जीता था। फ़िल्म में फिशर की मानसिक हालत, शीत युद्ध का माहौल, और शतरंज को एक युद्ध जैसे रूप में दिखाया गया है। 

फ़िल्म का संदेश: शतरंज सिर्फ़ दिमाग का खेल नहीं, इसमें राजनीति, दबाव, और व्यक्तित्व का भी बड़ा योगदान होता है। 


  4. मोल्ला (Molly's Game, 2017) – शतरंज नहीं, पर दिमाग़ी चालें यह फिल्म शतरंज पर सीधे आधारित नहीं है, लेकिन इसमें मुख्य किरदार का अतीत शतरंज से जुड़ा है। मोल्ली ब्लूम एक स्कीयर से अवैध हाई-स्टेक पोकर गेम्स की आयोजक बनती है। उसका तेज दिमाग, प्लानिंग और रणनीति — ये सब शतरंज से आए गुणों की तरह दर्शाए गए हैं। 


  5. Searching for Bobby Fischer (1993) – बच्चों में छुपी प्रतिभा यह फ़िल्म एक छोटे बच्चे, जोश वेट्जकिन की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो शतरंज की अद्भुत प्रतिभा रखता है। उसके माता-पिता उसे ग्रैंडमास्टर बनाने के लिए कोचिंग दिलवाते हैं, लेकिन जोश अपने खेल में करुणा और रचनात्मकता को छोड़ना नहीं चाहता। फ़िल्म खेल के दबाव और बच्चे की मासूमियत के टकराव को सुंदरता से दर्शाती है। 



  6. अट्टाहासम (Attahasa, 2013 - तमिल फ़िल्म) – शतरंज का प्रतीकात्मक उपयोग हालाँकि यह फ़िल्म कुख्यात डाकू वीरप्पन पर आधारित है, लेकिन शतरंज को इसमें प्रतीक के रूप में उपयोग किया गया है। वीरप्पन और पुलिस के बीच की रणनीतिक चालों को शतरंज के खेल के समान दिखाया गया है, जिससे फ़िल्म को गहराई मिलती है। 



  7. The Coldest Game (2019) – थ्रिलर और शतरंज का मेल यह एक पॉलिश थ्रिलर फिल्म है जिसमें शतरंज के खेल के बीच जासूसी और युद्ध की राजनीति को दिखाया गया है। फ़िल्म में बताया गया है कि कैसे एक ग्रैंडमास्टर को अमेरिका और रूस के बीच के तनावपूर्ण समय में एक शतरंज टूर्नामेंट में भेजा जाता है, जहां वह जासूसी करता है। 




  क्यों खास हैं ये फ़िल्में? शतरंज पर आधारित फ़िल्में सिर्फ खेल को नहीं दिखातीं, बल्कि:जीवन की जटिलताओं को दर्शाती हैं। मानसिक संघर्ष, रणनीति, और धैर्य जैसे गुणों पर फोकस करती हैं समाज, राजनीति और इतिहास से भी जुड़ाव रखती हैं। इन फिल्मों से हमें यह सीखने को मिलता है कि जीवन भी एक शतरंज की बिसात जैसा है – हर चाल सोच-समझकर चलनी पड़ती है। 



  निष्कर्ष शतरंज और सिनेमा, दोनों ही रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता के क्षेत्र हैं। जब ये दोनों मिलते हैं, तो दर्शकों को सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि सोचने का एक नया दृष्टिकोण भी मिलता है। ऊपर दी गई फ़िल्में दर्शाती हैं कि शतरंज सिर्फ़ 64 खानों का खेल नहीं, बल्कि यह हमारे समाज, मन और संबंधों का दर्पण भी बन सकता है। अगर आपने इनमें से कोई फ़िल्म नहीं देखी है, तो आज ही समय निकालकर देखें। शायद आपको भी अपने जीवन की अगली चाल समझ में आ जाए।


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